सीख
वक्त बुरा , हाल बेहाल हैं देखो तो आज इंसान का
पहाड़ दरक रहे , जमीं फट रही , हर तरफ आलम पुकार का
अलग-अलग हैं जगह सभी ,फिर भी जुड़ रहा रिश्ता दर्द का
बादल की गर्जन से आज , इंसानी चेहरा भी हैं भीगा सर्द सा
सांझ ढल रही , फिर भी आसमां में कहीं आसदीप हैं चांद सा
मनस्वी ..निशा के बाद अब होगा, भोर उजला शांत सा
ए मानव !मत घबरा सीख ले बस !आशियाना नया बसा
प्रेम कर प्रकृति से , ना फाड़ उसका सीना , ना ही उसमे समा
सृष्टा हैं वो , दृष्टा भी , तुझमें भी हैं समाया , ना तुझसे हैं जुदा
मनस्वी .. मत भूल उसे , कर वंदन, वही ईश हैं वही खुदा ।।
©® मनस्वी
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