Saturday 22 September 2018

मुस्कुराती आँखों में  अब नमी सी है
मनस्वी-खुश हूँ मगर कुछ कमी सी है
--------------------मीनू मनस्वी ----------------------------------

Thursday 31 May 2018

कंकाल रूपी आदमियत

कंकाल रूपी आदमियत
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देख तुझे यूँ
सहम सा गया ..
फिर अचानक
कुछ स्मृत कर
ठहर सा गया ..
कभी देखूं तुम्हे
तो कभी निहारूं
मैं खुद को..
मैं भी तो तू
आज हो नही गया..
क्यों डरूँ मैं
हाँ , क्यों डरूँ मैं तुमसे
मैं भी तू आज
तू भी तो मैं आज
हो सा गया ....
हाँ ,,, मनस्वी ,,, हाँ
बस नज़र गहराने
की देर है ,,,
फिर अंदर की
चमड़ी गलाने की
फिर क्यों डरूँ मैं
हाँ ,क्यों डरूँ मैं
मैं अब तू ,,
तू मैं हो गया
सबकी नजर
पारखी नज़र
घर संसार में
दुनियादारी में
पिसता मैं ^आदमी^
आज कंकाल सा
हो तो गया ...    ( मनस्वी )
मीनाक्षी कपूर मीनू ।सर्वाधिकार सुरक्षित है।
टिप्पणी ...आज का मानव अपनी भागदौड़ भरी ज़िंदगी बहुत से अभावो में , प्रभावों में और मुश्किलो से गुज़ार रहा है कि चाहे अमीर हो या गरीब सबकी अपनी अपनी दोहरी ज़िंदगी है जो कहीं उसकी असलियत को कोट पैंट में तो कहीं सादा कपडों में ढकने की कोशिश करती है और कामयाब भी होती है लेकिन इस मानव मन का क्या करें वह दूसरों से तो ढके मगर खुद की नज़रों से कैसे बचें जो उसे देख रही है कंकाल की शक्ल में गलता सड़ता हुआ .. 😢  फिर भी है सभ्य शालीन मुस्कान से लिपटा हुआ ।

Saturday 21 April 2018

फिर से वही छटपटाहट... वही अहसास ,,  भीतही सतह पर खरोंच ..रिसते घाव का अदृश्य उभार फिर उभर आया ... 
ज़िन्दगी की राह में चलते चलते कभी कभी कोई ऐसा क्षण आ जाता है जो यादों को कुरेद कर मन को आहत कर देता है और हम चाह कर भी खुद को उदास होने से रोक नहीं पाते । आज कही जब वैसा ही माहौल पाया अपनों से अपनों को बिछुड़ते पाया तो  ,,,,,,
आहत
''''''''''''':
बहुत आहत
हुआ मन ,,,,
देखा  जब
बातों ही बातों में
उड़ गए प्राण पखेरू
मिटटी हुआ तन
अचानक तेज़ झंझावात से
यूँ लगा ,,,,,,
बरसों से बंद
खिड़लिया कपाल हिलने लगे
ज़ोर ज़ोर से,,,,
और फिर मुड़ गया मन
भीतर की ओर
देखा वर्षों से चादर
तान सोई जड़ यादें
होने लगी  चेतन
यकायक ,,,,,
हाथ पकड़ किसी ने
खींच अपनी ओर
बदल दी मन की राह
और फिर चेतन अवचेतन
के बीच झूलता मन ,,,,,
बढ़ गया बाहर की ओर
मुस्कुराते हुए
फिर भी लगा
कही से चोर दृष्टि से
छुप के देख रही है
भिंची हुयी आँखे
तूफ़ान को जबर्दस्ती
रोकते हुए मानो ......
'मनस्वी ' .....
डबडबाहट को रोक
सैलाब को पी रही ,,,,,,,  :(
स्वरचित । सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
मीनाक्षी कपूर मीनू ( मनस्वी )
एक अंश -धरा का
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
मैं ...
मैं जनित
हम...
और इसी हम से
आवर्तन
परावर्तन ,करके
बहुत आहत हुई
मैं ........
बड़ी -बड़ी शिलाएं
तम की ,
बाँध मुझ पर
दबा दिया इतना
कि मैं ,
मैं ना रही .....
बन गयी,
ऊसर ...
जो थी कभी
उपजाऊ ..
होती थी
प्रेम वृष्टि
लहलहाती थी ,
फसलें ...
हाँ --तब थी
तृप्ति ,भूख की ...
और आज ,
आज है सृष्टि ,
भूख की ..
बस
यही तो है आवर्तन ,
मन का -
जो आज काट मुझको
खा गए तुम ,
मैं ......आज
मैं ना रही ,
गल के खाक हो रही
मगर क्या ..?
इस तरह
तुम भी ना खो जाओगे ,
अन्ततः
दूँढोगे
एक पग
धरा का ' मनस्वी '
ना पाकर
खाक हो जाओगे ......' मनस्वी '
मीनाक्षी कपूर मीनू ।सर्वाधिकार सुरक्षित है ।

Wednesday 18 April 2018

मन से ....
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आँखों की नमी ने
हरफ़ कुछ लिख डाले 
मनस्वी ..
मन की आँखों से  
आ ....
ज़रा देख तो ले ... 
सकूं पा सकूँ तो
सुखा दूँ ...
इस नमी को भी 
मनस्वी .... . 
तू आ के 
ज़रा समेट तो ले ...
गुम गया वज़ूद .
छायाचित्र से हो गए
मनस्वी ..
आ ज़रा ..
इसे रूबरू होने तो दे .. 
स्वरचित ।सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
मीनाक्षी कपूर मीनू (मनस्वी)