Thursday 31 May 2018

कंकाल रूपी आदमियत

कंकाल रूपी आदमियत
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देख तुझे यूँ
सहम सा गया ..
फिर अचानक
कुछ स्मृत कर
ठहर सा गया ..
कभी देखूं तुम्हे
तो कभी निहारूं
मैं खुद को..
मैं भी तो तू
आज हो नही गया..
क्यों डरूँ मैं
हाँ , क्यों डरूँ मैं तुमसे
मैं भी तू आज
तू भी तो मैं आज
हो सा गया ....
हाँ ,,, मनस्वी ,,, हाँ
बस नज़र गहराने
की देर है ,,,
फिर अंदर की
चमड़ी गलाने की
फिर क्यों डरूँ मैं
हाँ ,क्यों डरूँ मैं
मैं अब तू ,,
तू मैं हो गया
सबकी नजर
पारखी नज़र
घर संसार में
दुनियादारी में
पिसता मैं ^आदमी^
आज कंकाल सा
हो तो गया ...    ( मनस्वी )
मीनाक्षी कपूर मीनू ।सर्वाधिकार सुरक्षित है।
टिप्पणी ...आज का मानव अपनी भागदौड़ भरी ज़िंदगी बहुत से अभावो में , प्रभावों में और मुश्किलो से गुज़ार रहा है कि चाहे अमीर हो या गरीब सबकी अपनी अपनी दोहरी ज़िंदगी है जो कहीं उसकी असलियत को कोट पैंट में तो कहीं सादा कपडों में ढकने की कोशिश करती है और कामयाब भी होती है लेकिन इस मानव मन का क्या करें वह दूसरों से तो ढके मगर खुद की नज़रों से कैसे बचें जो उसे देख रही है कंकाल की शक्ल में गलता सड़ता हुआ .. 😢  फिर भी है सभ्य शालीन मुस्कान से लिपटा हुआ ।