Saturday 21 April 2018

फिर से वही छटपटाहट... वही अहसास ,,  भीतही सतह पर खरोंच ..रिसते घाव का अदृश्य उभार फिर उभर आया ... 
ज़िन्दगी की राह में चलते चलते कभी कभी कोई ऐसा क्षण आ जाता है जो यादों को कुरेद कर मन को आहत कर देता है और हम चाह कर भी खुद को उदास होने से रोक नहीं पाते । आज कही जब वैसा ही माहौल पाया अपनों से अपनों को बिछुड़ते पाया तो  ,,,,,,
आहत
''''''''''''':
बहुत आहत
हुआ मन ,,,,
देखा  जब
बातों ही बातों में
उड़ गए प्राण पखेरू
मिटटी हुआ तन
अचानक तेज़ झंझावात से
यूँ लगा ,,,,,,
बरसों से बंद
खिड़लिया कपाल हिलने लगे
ज़ोर ज़ोर से,,,,
और फिर मुड़ गया मन
भीतर की ओर
देखा वर्षों से चादर
तान सोई जड़ यादें
होने लगी  चेतन
यकायक ,,,,,
हाथ पकड़ किसी ने
खींच अपनी ओर
बदल दी मन की राह
और फिर चेतन अवचेतन
के बीच झूलता मन ,,,,,
बढ़ गया बाहर की ओर
मुस्कुराते हुए
फिर भी लगा
कही से चोर दृष्टि से
छुप के देख रही है
भिंची हुयी आँखे
तूफ़ान को जबर्दस्ती
रोकते हुए मानो ......
'मनस्वी ' .....
डबडबाहट को रोक
सैलाब को पी रही ,,,,,,,  :(
स्वरचित । सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
मीनाक्षी कपूर मीनू ( मनस्वी )
एक अंश -धरा का
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
मैं ...
मैं जनित
हम...
और इसी हम से
आवर्तन
परावर्तन ,करके
बहुत आहत हुई
मैं ........
बड़ी -बड़ी शिलाएं
तम की ,
बाँध मुझ पर
दबा दिया इतना
कि मैं ,
मैं ना रही .....
बन गयी,
ऊसर ...
जो थी कभी
उपजाऊ ..
होती थी
प्रेम वृष्टि
लहलहाती थी ,
फसलें ...
हाँ --तब थी
तृप्ति ,भूख की ...
और आज ,
आज है सृष्टि ,
भूख की ..
बस
यही तो है आवर्तन ,
मन का -
जो आज काट मुझको
खा गए तुम ,
मैं ......आज
मैं ना रही ,
गल के खाक हो रही
मगर क्या ..?
इस तरह
तुम भी ना खो जाओगे ,
अन्ततः
दूँढोगे
एक पग
धरा का ' मनस्वी '
ना पाकर
खाक हो जाओगे ......' मनस्वी '
मीनाक्षी कपूर मीनू ।सर्वाधिकार सुरक्षित है ।

Wednesday 18 April 2018

मन से ....
********
आँखों की नमी ने
हरफ़ कुछ लिख डाले 
मनस्वी ..
मन की आँखों से  
आ ....
ज़रा देख तो ले ... 
सकूं पा सकूँ तो
सुखा दूँ ...
इस नमी को भी 
मनस्वी .... . 
तू आ के 
ज़रा समेट तो ले ...
गुम गया वज़ूद .
छायाचित्र से हो गए
मनस्वी ..
आ ज़रा ..
इसे रूबरू होने तो दे .. 
स्वरचित ।सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
मीनाक्षी कपूर मीनू (मनस्वी)