सीधी-सादी बात भी गुम जाती हैं कंक्रीट के शहरों में अब
मनस्वी... ग़ज़ल क्या समझेंगे यहाँ , पत्थर बने इंसान सब ..
©® मनस्वी
सीधी-सादी बात भी गुम जाती हैं कंक्रीट के शहरों में अब
मनस्वी... ग़ज़ल क्या समझेंगे यहाँ , पत्थर बने इंसान सब ..
©® मनस्वी
आज फिर ... मन भर आया
चली मैं , तुम संग
बन हरियाली छाया
हाँ.... तुम ही तो हो
जो वर्षों से मुझे
देते आये संबल
कभी अपनी काया से
कभी मीठी छाया से
छिपा अपने आगोश में ...
पोंछ मेरे आंसू
अपनी आर्द्रता से
मेरे सूखे मन को
हल्के से सहला देते
और.. और.. मैं...सुबक उठती
तुम्हारी हरित कांति में
फिर ..फिर..
तुम धुंध की गहरी चादर में
मानो ... छुपा देते मुझे
प्रकृति की चादर में
तत्पश्चात ....
प्रकृति की कोख से
पुनर्जीवित सी ' मैं '
'मनस्वी ' ....
खिल उठती नवजीवन पा
दुआ को उठते हाथ ज्यूँ
मुस्कुराने लगते पात यूँ.... ©®मनस्वी
सीख
वक्त बुरा , हाल बेहाल हैं देखो तो आज इंसान का
पहाड़ दरक रहे , जमीं फट रही , हर तरफ आलम पुकार का
अलग-अलग हैं जगह सभी ,फिर भी जुड़ रहा रिश्ता दर्द का
बादल की गर्जन से आज , इंसानी चेहरा भी हैं भीगा सर्द सा
सांझ ढल रही , फिर भी आसमां में कहीं आसदीप हैं चांद सा
मनस्वी ..निशा के बाद अब होगा, भोर उजला शांत सा
ए मानव !मत घबरा सीख ले बस !आशियाना नया बसा
प्रेम कर प्रकृति से , ना फाड़ उसका सीना , ना ही उसमे समा
सृष्टा हैं वो , दृष्टा भी , तुझमें भी हैं समाया , ना तुझसे हैं जुदा
मनस्वी .. मत भूल उसे , कर वंदन, वही ईश हैं वही खुदा ।।
©® मनस्वी