न चाहते हुए भी
उसने देखा
उसने देखा कि......
वह जा रहा है
एक ऐसी डगर पर
जहां फैले हैं
चारों ओर
उदासी के घने बादल
घना कोहरा
इतना कि....
खुद की पहचान न हो
अचानक
अचानक ये क्या ....
उसे लगा कि
वह , वह नहीं
कोई और है
मनस्वी
जो चला जा रहा है
अकेला
निस्पंद
सुनसान राह में
नि:शब्द
उसकी उदासी का साया .............
बहुत सुन्दर ....ये उदासी का साया ही तो सच्चा साथी होता है ..कभी साथ नहीं छोड़ता ...
ReplyDeleteहाँ .. सुमन , साया ही तो हमारा सच्चा साथी है........ धन्यवाद .........
Deleteबहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं ...
ReplyDeleteसाया तो साथ हो .... लेकिन ... उदासी का साया न हो ..... !!
सबसे पहले तो तहेदिल से आपकी शुभकामनायें स्वीकार है जी ..................कोशिश करूंगी कि साया उदासी का न हो मगर .......कोशिश कामयाब होगी या नहीं ..........नहीं पता ..........साभार ........
Deleteबधाई एवं शुभकामनाएं..
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद अमित जी .................
Deleteबहुत-बहुत बधाई !
ReplyDeleteशानदार आगाज़ ! जानदार ब्लोग !
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पहली कविता भी अच्छी है-
उसे लगा कि
वह , वह नहीं
कोई और है
मनस्वी
जो चला जा रहा है
अकेला
निस्पंद
सुनसान राह में
नि:शब्द
उसकी उदासी का साया
===बधाई !======
ओम जी ...............क्या कहूँ आपसे ..आप इतना अच्छा लिखते है ,हम तो बस ऐसे ही थोड़ा सा ...........बहुत अच्छा लगा आपका प्रोत्साहन पाकर .........बहुत बहुत धन्यवाद जी ...........
Delete"जो चला जा रहा है
ReplyDeleteअकेला
निस्पंद
सुनसान राह में
नि:शब्द
उसकी उदासी का साया ........."
सुंदर !
दिल से धन्यवाद सुशीला जी .......आभार ............
DeleteGreat.....
ReplyDeleteभवानी जी ..........बहुत बहुत धन्यवाद ....................
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद शिवम जी .......
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके स्वागत से जी .......आगे बढ़ने की हिम्मत मिली ..........
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.
ReplyDeleteधन्यवाद ...संजय जी .............
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