कितना बेबस होता है इन्सान
बाहर हँसता भीतर रोता है इन्सान
मगर क्यों दुनिया वालो ? शायद
तुम्हारे हँसने से डरता है इन्सान.....
आज लगता है जैसे दो चेहरे
रखता है हर इन्सान ......
रखता नहीं मगर रखने पर
मजबूर होता है हर इन्सान .....
चाहता कुछ और है मगर
पाता कुछ और है इन्सान
यूँ लगता है जैसे हर रोज
जीता और मरता है इन्सान.........
आज विश्वास -अविश्वास
के बीच जी रहा है इन्सान
अपने दर्दे - दिल को भी
मुस्कुराते हुए पी रहा है इन्सान ........
आज किसी को दोस्त तो किसी
को दुश्मन बनाता है इन्सान
मगर किसी को भुलाते हुए
खुद को भी भूल जाता है इन्सान .........
हर पल आशा व निराशा के
झूले में झूलता रहता है इन्सान
अनचाहे ही दूसरों की पीड़ा
में सूखता रहता है इन्सान ......
बदलना चाहता है खुद को मगर
बदल नहीं पाता है इन्सान
' मनस्वी '
यूँ ही सोचते -सोचते एक दिन
जिंदगी छोड़ जाता है इन्सान ...........................
08/01/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!
विभा रानी जी ....आपका बहुत बहुत धन्यवाद ....बहुत अच्छा लगा ....आभार .....
Deleteखूबसूरत भाव.
ReplyDeleteधन्यवाद निहार जी ......
Deleteमार्मिक भाव ...
ReplyDelete~सादर!!!
अनीता जी ...तहेदिल शुक्रिया ..........
Deletedil ko chhoo gyee rachana ....abhar.
ReplyDeleteनवीन जी ...अच्छा लगा ...आपको रचना पसंद आयी ...धन्यवाद जी आपका ...
Deletesundar rachna manasvi ji bahut pasand aayi
ReplyDeleteसंध्या जी ...रचना पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया जी ...आभार दिल से ...बस मन के भाव हैं ....
Deleteदिल के भावों की रचना
ReplyDeleteअंजू जी ...सच में कभी कभी दिल में भाव हलचल मचा देते है फिर किसी ना किसी रूप में बाहर निकल आते हैं ....आभार जी दिल से .....
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण जी ......
Delete....बहुत खूब!बहुत सुंदर भाव और शब्दों का संकलन...!!!!
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी ........ :)
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