Saturday 8 December 2012


बदलाव 
'''''''''''''''''''
ना जाने क्यूँ
कभी -कभी 
मन उदास हो जाता है ,
बेवज़ह भिगो देता है ,
आँखों को
जब कि ------
सब कुछ वही है 
वही ज़मीं 
वही आसमां

वही पेड़
वही लोग ----
फिर ,फिर ,फिर 
क्या हुआ ..........?
जो बदल गया 
उनको ....
उनके अन्तर्मन को ..
तभी अचानक 
धमाका सा हुआ 
मानस पटल में 
और -और -और .........
समझ गयी वह ,
उस बदलाव को 
जो उदास कर गया 
वह बदलाव था ,
लोगों के मन का 
जातिगत भावनाओं का .
जो खा गया .......
अपनत्व को ,
प्रेम भाव को ,
प्यार को ,
भाई -चारे को 
और छोड़ गया 
उदासी ,
विरक्ति ,
बेगानापन ,
रक्त-रंजित दरारें ........
जो प्रेम व अपनत्व 
था पहले ,
सबके लिए 
वह ले बैठा रूप 
जाति व धर्म का ,
"बस "
कुछ ही समय में 
बदल गया 
"सब "
इस शाब्दिक परिवर्तन समान
पहले जो था 
"हमारा "
अब "मेरा " हो गया ........
पहले थी संकीर्णता 
ज़मीं की .........
अब मन .............." मनस्वी "..........
संकीर्ण हो गया ...............................................

2 comments:

  1. रचनाऐ बे‍हतरीन हैं एकांकीपन की बैचेनी महसूस कराती हैं

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    1. धन्यवाद सतीश जी .......... आज हर इंसां अंदर से अकेला सा है शायद .. क्यूंकि बाहर इतना शोर है कि इंसां अपने अंदर मानो गुम सा हो गया है ......... आभार ......

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