तुच्छ प्राणी
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हे माँ ..........
तेजोमय तू
मैं तम में भटका
तुच्छ प्राणी ....
उलझा इस समय के पड़ाव में
कुछ प्रश्न लिए ....?
इस तिमिर मय
विक्षिप्त मन में
निरुत्तर हूँ मैं
तुच्छ प्राणी .............
डगमगाते कदम
तिक्त है जमीं
और है समय
फिसलता सा बंद मुठ्ठी से
इस भटकन ,
इस फिसलन
में फंसा हुआ ' मनस्वी '
thanks suman ...:)
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ReplyDeleteप्रभावी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी ..........
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