Monday, 30 April 2012

खामोश दास्ताँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,





कब तक यूँ सिसक-सिसक कर हम जियें जायेंगे
जिंदगी के ज़हर को यूँ पियें जायेंगे
कहना चाहेंगे बहुत कुछ पर कह न पाएंगे
दिल ही दिल में हम रोते रह जायेंगे
तोड़ेंगे गर खामोंशी तो रुसवा हो जायेंगे
न तोड़ पाए तो घुट के मर जायेंगे
अब करें भी तो करें क्या हम ऐ दोस्त .....
ख़ामोशी की जुबां को आप भी समझ न पाएंगे
बहुत सह चुके है मनस्वी ,अब सह न पाएंगे
लगता है इस कशमकश से अब हम टूट जायेंगे
जुबां खामोश है आँखें भी खामोश हो जायेंगी
देखते ही देखते ये जिंदगी चली जायेगी
लब खामोश है पर आँखें कह रही है ऐ दोस्त ..........
क्या आप भी मेरी ख़ामोशी तोड़ नहीं पाएंगे !!!!!!!!!!!!!















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Wednesday, 25 April 2012

उदासी का साया


















न चाहते हुए भी
उसने देखा
उसने देखा कि......
वह जा रहा है
एक ऐसी डगर पर
जहां फैले हैं
चारों ओर
उदासी के घने बादल
घना कोहरा
इतना कि....
खुद की पहचान न हो
अचानक
अचानक ये क्या ....
उसे लगा कि
वह , वह नहीं
कोई और है
मनस्वी
जो चला जा रहा है
अकेला
निस्पंद
सुनसान राह में
नि:शब्द
उसकी उदासी का साया .............